लैलुंगा, 95% आंगनबाड़ी केंद्र महीने में एक सप्ताह से ज्यादा नहीं खोले जाते हैं। और जो आंगनबाड़ी खोलते हैं वह भी कभी 11 कभी 12 बजे खुलते हैं और जल्दी से बंद कर दिए जाते हैं।
आंगनबाड़ी केंद्र को सहायिका और कार्यकर्ता द्वारा नियमित रूप से नहीं खोला जाता है न हीं नियमित रूप से पोषक आहार बच्चों को दिया जाता है शासन के नियमानुसार प्रत्येक दिन अलग-अलग भोजन व्यवस्था किया गया है परंतु उसे नियम के अनुसार बच्चों को पोषक आहार नहीं दिया जाता कुछ आंगनबाड़ी केंद्र में तो बच्चों से झाड़ू लगवाया जाता है और बर्तन भी धुलवाया जाता है । गंदे बर्तनों में भोजन दिया जाता है। ऐसे में बच्चों का विकास नहीं हो पायेगा और बच्चे हमेशा ही बीमारी से ग्रसित रहेंगे।
सूत्रों के हवाले से खबर जब हमने एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता से बात किया तो उन्होंने बताया कि कुछ दिन महीना में आंगनबाड़ी केंद्र खोले जाते हैं जिससे बच्चे अनुपस्थित रहते हैं और बच्चों के माता-पिता भी बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र नहीं भेज पाते छोटे-छोटे बच्चे इधर-उधर घूमते रहते हैं आंगनवाड़ी सहायिका आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की मनमानी के कारण बच्चे नियमित रूप से आंगनबाड़ी केंद्र नहीं जाते और न खेल पाते हैं ना ही पोषक आहार मिलता है इसका फायदा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सहायिका उठाते हैं और बच्चों की जो संख्या आंगनबाड़ी केंद्र में दर्ज के ली जाती है और वह प्रतिदिन पोषक आहार देना होता है उसको अपने कागजों में दर्ज और दुरुस्त कर लेते हैं और शासन से मिलने वाले भोजन और पोषक आहार को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका द्वारा प्राप्त कर लिया जाता है उसे वह अपने निजी लाभ में उपयोग में लाते हैं अब देखना यह है कि शासन इस तरह के कार्यकर्ता और सहायिका पर किस तरह कार्रवाई करती है और बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाले कर्मचारियों पर शासन क्या कार्रवाई करती है
लोकमत 24 इस मामले पर लगातार नजर रखेगा और आपको आगे की जानकारी देता रहेगा।
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