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शासकीय राशि का खुला बंदरबांट: निर्माण कार्य के पहले ही खत्म हो जाती है विकास की रकम

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लैलूंगा 03.07.2025 छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के नाम पर हर साल करोड़ों रुपये स्वीकृत किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। कारण स्पष्ट है—शासकीय राशि का योजनाबद्ध बंदरबांट। सरकारी योजनाओं से मिलने वाली राशि का बड़ा हिस्सा निर्माण कार्य शुरू होने से पहले ही “बंधवारा” में बंट जाता है। इससे वास्तविक कार्य के लिए जो धन शेष बचता है, उससे गुणवत्तायुक्त निर्माण की अपेक्षा करना व्यर्थ है।

सूत्रों के अनुसार, जैसे ही कोई कार्य योजना विधायक मद, सांसद मद, या किसी अन्य मद से स्वीकृत होती है, उसी समय से बंदरबांट की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। सबसे पहले काम पास कराने के लिए एजेंट को 10% तक की राशि देनी पड़ती है। उसके बाद मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) का हिस्सा लगभग 5% तय माना जाता है। उप यंत्री, जो कार्य का मूल्यांकन करता है, उसे भी 5% “नियमानुसार” दिया जाता है।

इसके बाद एस.डी.ओ. (सहायक यंत्री) को 3%, लिपिक को 2% और निरीक्षण अधिकारी को भी 1 से 2% की राशि मिलती है। वहीं निर्माण एजेंसी, जो अक्सर ग्राम पंचायत के सरपंच और सचिव होते हैं, उन्हें 10% की हिस्सेदारी दी जाती है। इसके अलावा, ठेकेदार जो वास्तव में निर्माण करता है, वह 10 से 15% अपने हिस्से में लेता है।

चौंकाने वाली बात यह है कि कुछ मीडिया प्रतिनिधियों को भी 1 से 2% देकर चुप कराया जाता है या पक्ष में खबरें छपवाई जाती हैं। मटेरियल खरीद के नाम पर जीएसटी बिल में भी लगभग 5% का गोलमाल किया जाता है।

इस तरह यदि किसी कार्य के लिए ₹10 लाख की राशि स्वीकृत होती है, तो अनुमानतः ₹4.5 से ₹5 लाख तक की राशि केवल बंदरबांट में खर्च हो जाती है। शेष ₹5 लाख की राशि से कार्य शुरू होता है, जिसमें सामग्री, श्रम, परिवहन, और अन्य खर्च जोड़े जाएं, तो गुणवत्ता की बात करना बेमान

इस प्रकार की व्यवस्था ने ग्रामीण विकास को पूरी तरह पंगु बना दिया है। कहीं अधूरी सड़कें हैं, कहीं पुल निर्माण के नाम पर सिर्फ गड्ढे हैं, तो कहीं स्कूल की इमारतें समय से पहले ही जर्जर हो चुकी हैं।

जनता में इस व्यवस्था को लेकर भारी आक्रोश है, लेकिन अधिकांश लोग आवाज उठाने से डरते हैं, क्योंकि सिस्टम में ऊपर से नीचे तक सबका हिस्सा तय है।

अब सवाल यह है कि क्या कभी यह बंदरबांट रुकेगा? क्या कभी यो7जनाओं 6का पैसा योजनाओं पर ही खर्च होगा? जब तक पारदर्शिता नहीं लाई जाती और जवाबदेही तय नहीं होती, तब तक विकास सिर्फ फाइलों और दीवारों पर लगे बोर्डों तक ही सीमित रहेगा।

लोकमत 24 इस मामले पर लगातार नजर रखगा और आपको आगे की जानकारी देता रहेगा।

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By Rakesh Jaiswal

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